- kabirthaparSoldier
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Tue Jul 25, 2017 12:27 pm
इन तमाम निराशाजनक स्थितियों के बीच उम्मीद की कंदील महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के एक छोटे से गांव बेलोरा में नज़र आई है। जहर के इस सागर से अमृत बनकर निकले कृषिगुरू श्री सुभाष पोलेकर की ‘जीरो बजट कुदरती खेती’ के विचार को हजारों किसानों ने हिन्दुस्तान भर में अनपाया है। सुभाष पालेकर का चिंतन सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति करूणा, प्रेम और सहअस्तित्व पर आधारित है।
चूकिं यह प्रकृति और धरती मां को मां मानने वाले वंशलों पर आधारित है। इसलिए इससे ऊपजी तमाम तकनीकें भी प्रकृति और धरती की सेवा करने वाली हैं। पालेकर ने देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत बनाने की विधियां विकसित की हैं।
वह किसान को धरती मां और समाज के प्रति उसके कर्तव्यों को निभाने की सीख, समझ और संस्कार भी देता है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण जीरो बजट कुदरती खेती अमरावती से शुरू होकर आज पूरे भारत ही नहीं विश्व तक में प्रतिष्ठत हो रही है।
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